श्याम बेनेगल - समानांतर सिनेमा के अग्रदूत
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समानांतर सिनेमा के अग्रदूत श्याम बेनेगल |
भारतीय हिंदी सिनेमा के एक प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता, पटकथा लेखक और निर्देशक श्याम बेनेगल, जिन्हे भारतीय समानांतर सिनेमा के अग्रदूतों में से एक माना जाता था। वे अपनी यथार्थवादी और संवदेनशील फिल्मों के लिए जाने जाते थे। उनका जीवन और योगदान भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण रहा है।
जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन : -
उनका जन्म 14 दिसम्बर 1934 को तत्कालीन आंध्रप्रदेश [ वर्त्तमान में तेलंगाना ] के सिकंदराबाद में एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीधर बी. बेनेगल, जो फोटोग्राफी के क्षेत्र से जुड़े हुए थे। जब श्याम बेनेगल बारह वर्ष के थे, तब उनके पिता ने उन्हें एक कैमरा दिया था।
बचपन से ही उन्हें फ़िल्में देखने और कहानियाँ सुनाने का शौक था, इसी कारण वे सिनेमा की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने अपने पिता द्वारा दिए गए कैमरा पर अपनी पहली फिल्म बनायी थी।
उन्होंने अर्थशास्त्र में एम्. ए. की डिग्री हैदराबाद स्थित उस्मानिया विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उसी दौरान उन्होंने हैदराबाद में ' हैदराबाद फिल्म सोसायटी ' की भी स्थापना की थी।
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हैदराबाद स्थित उस्मानिया विश्वविद्यालय |
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करियर की शुरुवात : -
श्याम बेनेगल ने 1959 अपने करियर की शुरुवात लिंटास एडवरटाइजिंग एजेंसी में एक कॉपीराइटर के रूप में कार्य आरम्भ किया था,जहां उन्होंने विज्ञापन फ़िल्में बनाई। इसी एजेंसी में वे क्रिएटिव हेड बन गए, 1960 के दशक में उन्होंने अपनी पहली लघु फिल्म " गुजरात का मानसून " बनाई। इस लघु फिल्म ने उन्हें पहचान दिलाई।
अपनी पहचान बनाने के पश्चात 1966 और 1973 के मध्य पुणे में स्थित भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान में पढ़ाया और दो बार संस्थान के अध्यक्ष भी बने।
1992 में श्याम बेनेगल ने वृत्तचित्र बनाना आरम्भ कर दिया था। उनके एक वृत्तचित्र " ए चाइल्ड ऑफ द स्ट्रीटस [1967] ने उन्हें बहुत प्रशंसा दिलाई। इस दौरान उन्होंने करीब सत्तर से अधिक वृत्तचित्र बनाए है।
समानांतर सिनेमा की ओर : -
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1974 में प्रदर्शित फिल्म " अंकुर "जिसे समानांतर सिनेमा की शुरुवात माना जाता है। इस फिल्म में शबाना आज़मी को पुरस्कार भी मिला। |
श्याम बेनेगल ने 1974 अपनी पहली फीचर फिल्म " अंकुर " बनाई, जो समानांतर सिनेमा की शुरुवात का प्रतिक मानी जाती है। यह फिल्म भारतीय समाज की कड़वी सच्चाईयों उजागर करती है और इस फिल्म शबाना आज़मी तथा अनंत नाग ने मुख्य भूमिका निभाई। "अंकुर" को काफी प्रशंसा मिली और यह राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली उनकी पहली फिल्म बनी।
अगले वर्ष ही उन्हें दूसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ, इनके आलावा शबाना आज़मी को भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त। हुआ।
इसके बाद उन्होंने " निशांत " [1975], " मंथन " [1976] और " भूमिका " [1977] जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों ने ग्रामीण भारत की समस्याओं, महिला सशक्तिकरण और समाज की विभिन्न जटिलताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। " मंथन " फिल्म भारत की पहली क्राउड - फंडेड फिल्म रही, जिसे किसानो के योगदान से बनाया गया था।
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फिल्म " निशांत " "मंथन" " भूमिका " का पोस्टर |
टेलीविजन और डॉक्यूमेंट्री : -
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भारत एक खोज पुस्तक का कवर |
श्याम बेनेगल ने भारतीय टेलीविजन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने 1980 के दशक में " भारत एक खोज " ऐतिहासिक धारावाहिक का निर्देशन किया, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब " डिस्कवरी ऑफ इंडिया " पर आधारित था। यह धारावाहिक भारतीय इतिहास और संस्कृति को समझाने का एक सशक्त माध्यम बना।
श्याम बेनेगल ने कई डाक्यूमेंट्री फिल्मों का भी निर्देशन किया है, जिनमे सामाजिक मुद्दों, कला और संस्कृति को प्रमुखता दी गई। उनकी डॉक्यूमेंट्री में --------
1] " द सेवंथ हॉर्स ऑफ द सन " [1992], " 2] " मुजीब " [1994], " मम्मा " [1994], " मुजीब ' [1994], " द मेकिंग ऑफ़ द महात्मा " [1996], " सरदारी बेगम " [1996], " कॉनफ्लिक्ट " [1999], " हरी - भरी " [2000], " ज़ुबैदा " [2001], " नेताजी सुभाष चंद्रा बोस : द फॉरगॉटन हीरो " [2005], " वेलकम टू सज्जनपुर " [2008] और " वेलडन अब्बा " [2009] शामिल है।
पुरस्कार और सम्मान : -
श्याम बेनेगल को उनकी फिल्मों और योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1976 में ' पद्मश्री ' और 1991 में ' पद्मभूषण ' जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान मिले। इसके आलावा 7 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 1994 में ' दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला था।
व्यक्तिगत जीवन : -
श्याम बेनेगल का जीवन सादगीपूर्ण और प्रेरणादायक रहा है। वे हमेशा से कहानी के माध्यम से समाज को जागरूक करने और बदलाव लाने में विश्वास रखते थे।
उन्हें भारतीय सिनेमा के उन महान व्यक्तियों में से एक माना जाता है, जिन्हे अपनी कला से न केवल मनोरंजन किया बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया। उनकी फिल्मों ने सिनेमा को एक नया आयाम दिया और वे आज भी भारतीय सिनेमा के पथप्रदर्शक माने जाते है।
मृत्यु : -
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के इस दिग्गज निर्देशक ने 50 वर्षों से भी अधिक लम्बा सफर तय करते हुए 90 वर्ष की आयु में 23 दिसम्बर 2024 को आखरी सांस ली।
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14 दिसम्बर 1934 - 23 दिसम्बर 2024 | |
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